Saturday, August 1, 2015

उदघाटन....

गुरू जी नमस्ते! पहचाना..??
.
मैँ आपका शिष्य कल्लू बोल रहा हूँ।
.
''अरे ! कल्लू कैसे हो तुम ?? आज इतने सालो बाद
मेरी याद कैसे आ गई ?? .
...और मेरा फोन नम्बर कैसे मिल गया??''
.
गुरूजी ! फोन नम्बर ढ़ुंढ़ना कौन सा मुश्किल था ?
जब प्यासे को प्यास लगती है तो जलस्रोत ढ़ुंढ़ ही लेता है। .
...दरअसल गुरू जी हमने एक नया रोजगार शुरू किया है।
...और आपने बचपन मेँ कहा था की जब भी कोई काम शुरू 

करना हमसे उदघाटन जरूर कराना।
. ...तो हम अपने काम का उदघाटन आपसे
ही कराना चाहते है।
.
''अतिसुन्दर ! वत्स। बताओ कहाँ आना है उदघाटन
के लिये हमेँ ? ''
. गुरूजी ! आप पुराने खंडहर के पास चार लाख
रूपया लेके आ जाईये। ..
.
आपका 'छोटूवा' हमरे कब्जे मेँ है। आज से
ही 'अपरहण' का धंधा चालू किया तो सोचा की 'उदघाटन' आपके शुभ हाथो से ही हो।



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